जम्मू कश्मीर के गुजर बकरवाल नृत्य ने दिया एकता और शांति का संदेश, ओडिसा का सिंगारी नृत्य दर्शकों में भर दिया जोश

रायपुर। राजधानी रायपुर में आयोजित 3 दिवसीय राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के दूसरे दिन भी आदिवासी संस्कृति की झलक नृत्य और संगीत से सराबोर रहा। देश के अलग अलग प्रान्तों से आये दलों ने अपने रीति-रिवाजों और परम्पराओं की आकर्षक प्रस्तुति दी जो दर्शकों को रोमांचित कर दिया। सांध्यबेला में जम्मू कश्मीर से आये 18 सदस्यों के दल ने एकता और शांति का ऐसा संदेश दिया कि दर्शक दीर्घा तालियों की गड़गड़ाहट से गुंजायमान हो गया। अपनी धरती की खूबसूरती और उससे लगाव को दल ने भाव सहित प्रस्तुत किया। दर्शकों ने उन्हें खूब प्यार दिया। समूह के एक कलाकार ने कहा कि यहाँ आकर उन्हें अपनेपन का एहसास हो रहा है। हिमाचल प्रदेश की कायंग शैली नृत्य में युवक और युवतियों ने गीत और संगीत के माध्यम से भावपूर्ण प्रस्तुति दी, उनके परिधान आकर्षक और चटकदार थे। मध्यप्रदेश के दल ने इस बार शैला, भड़म और कर्मा लहकी नृत्य की प्रस्तुति ने दर्शकों की खूब तालियां बटोरी। मांदर और मंजीरे की थाप में भड़म नृत्य मनमोह लिया।

वहीं लहकी कर्मा ने छत्तीसगढ़ की माटी की महक बिखेर दी। इस नृत्य ने राज्य की कर्मा शैली की यादें ताजा कर दी। नृत्य फसल कटाई के समय गाने वाले सौरा नृत्य शैली आंध्रप्रदेश की मिट्टी और संस्कृति की महक बिखेर दी। बारी-बारी से दलों ने प्रस्तुतियां दी। तत्पश्चात छत्तीसगढ़ बस्तर के मशहूर गौर माड़िया नृत्य ने भी अन्य राज्यों की प्रस्तुति के बीच अपनी छाप छोड़ी। मांदर और ढोल की थाप पर युवतियां थिरक रही थी। युवक सिर में गौर सींग और मोरपंख की कलगी लगाकर झूम रहे थे, तो युवतियां तीरूथ लेकर कदम से कदम मिलाकर साथ दे रही थी। इस नृत्य को दर्शकों ने एकाग्रचित्त होकर आनंद लिया। सुकमा के धुरवा नृत्य की सुमधुर संगीत ने अहसास कराया कि प्रकृति के हम कितने समीप हैं। कलाकारों के आपसी तालमेल और समन्वय बेजोड़ था।

कर्नाटक के नर्तक दलों का लाल-पीली वेशभूषा के साथ आदिवासी नृत्य दर्शकों को मूल जनजाति संस्कृति के करीब ले गया। पड़ोसी राज्य ओडिसा के कालाहांडी के सिंगारी नृत्य दर्शकों में रोमांच भर दिया। कलाकारों का उत्साह और जोश देखते ही बन रहा था। वाद्य यंत्रों और गीत की जुगलबंदी ने ठंड में भी गर्मी का एहसास दिला दिया। गुजरात का राठवा नृत्य रंग बिरंगे परिधानों में सजकर किया जाने वाला एक जनजातीय नृत्य है। इस समूह ने भी अपने नृत्य कौशल से दर्शकों का दिल जीत लिया। इन्हें भी खूब सराहा गया। पश्चिम बंगाल की संथाल जनजाति द्वारा किये जाने वाला संथाली नृत्य अपनी सादगी और विशेष परिधानों के लिए पहचानी गयी। उनके नृत्य शैली में संथाली संस्कृति की झलक दिखाई दी।

संबंधित समाचार

Leave a Comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.