रायपुर। अपनी संस्कृति और रहन-सहन जैसे अपने ही लोगों का प्यार, सत्कार जब मिलता है तो सात-समंदर की दूरी भी कम लगती है। कुछ ऐसा ही है थाईलैंड के कलाकारों की कहानी। राष्ट्रीय आदिवासी महोत्सव में छत्तीसगढ़ आकर जब अलग-अलग राज्यों के कलाकारों की संस्कृति को देखने का अवसर मिला और इन कलाकारों को जानने, समझने के बाद बातों ही बातों में एक दूसरे से परिचय हुआ तो थाईलैंड के कलाकारों को भारत की संस्कृति में अपनापन और यहाँ के लोग भी अपने से लगने लगे। भले ही वे यहाँ पहली बार आये है लेकिन अब उन्हें लगता है कि थाईलैंड और भारत के बीच कही न कही एक गहरा रिश्ता हजारों सालों से रहा होगा। शायद यही वजह है कि दोनों देश की संस्कृति, रहन-सहन और धर्म से जुड़ी कई मान्यताएं एक दूसरे से मिलती जुलती है। थाईलैंड के युवा कलाकार एक्कालक नूनगोन थाई और साथी कलाकारों को तो भारत के पूर्वी राज्य के लोग अपनी ही देश के निवासी से लगते है। एक्कालक का कहना है कि भारत में हिन्दू, बौद्ध धर्म की तरह थाईलैंड में भी इस धर्म के लोग है। संस्कृत और पाली भाषा भी बोली जाती है। हाथ जोड़कर नमस्ते सहित अभिवादन का तरीका, साड़ी सहित पोशाकों का पहनावा भी समान है।
साईंस कॉलेज मैदान में आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी महोत्सव में अपने देश थाईलैंड का प्रतिनिधित्व कर रहे यूनिवर्सिटी के छात्रों और अन्य कलाकारों ने आदिवासी जनजाति की संस्कृति और परंपराओं की रक्षा को सर्वोपरि बताते हुए इस तरह के आयोजन को आवश्यक बताया। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किए जा रहे आदिवासी महोत्सव की सराहना करते हुए एक्कालक ने कहा कि वे पहली बार छत्तीसगढ़ आए है। यहाँ भारत सहित अन्य देशों की संस्कृति को जानने का अवसर मिला। कार्यक्रमों के माध्यम से यह समझ आया कि देश चाहे कोई भी हो, सभी स्थानों में जनजातीय संस्कृति, परंपरा भाषा और अलग रहन-सहन होकर भी बहुत सारी समानताएं है। आदिवासी संस्कृति और उनके नृत्य में प्रकृति की रक्षा, खुशी में सहभागिता की झलक होती है। सबसे खास बात यह भी है कि आदिवासी जीवन शैली प्रकृति के निकट होती है। आदिवासी संस्कृति में आभूषण से लेकर बोलियां, पहनावा सब कुछ आकर्षण का केंद्र होता है। थाईलैंड के कलाकार एक्कालक ने बताया कि असम सहित भारत के कुछ पूर्वी राज्य के लोग उनके जैसे दिखते है। पहनावा भी बहुत कुछ मिलता जुलता सा है। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य के कलाकारों की प्रस्तुति उन्हें बहुत पसंद आई। कलाकारों का वाद्ययंत्रों की थाप में कदम से कदम मिलाकर नृत्य करते देखना सचमुच अनूठा था। एक्कालक ने यह भी बताया कि यहां जनजातियों द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली फूथाई नृत्य की प्रस्तुति देंगे। आमतौर पर फूथाई नृत्य को नववर्ष के साथ खुशियों के मौके में प्रस्तुत किया जाता है। एक्कालक ने बताया कि उसे भरतनाट्यम बहुत पसंद है। राष्ट्रीय आदिवासी महोत्सव के माध्यम से पहली बार रायपुर पहुंचे एक्कालक ने यहां हुए स्वागत, सत्कार और ठहरने से लेकर की गई अन्य व्यवस्थाओं पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ के लोगों की आत्मीयता को वह हमेशा याद करेगा। अपने देश जाकर भी इस यादगार सफर को और यहाँ कम दिन में बीते खास पलों को जरूर याद करेगा और अपने दोस्तों, परिचितों को भी छत्तीसगढ़ के लोगों और संस्कृति के बारे में बताएगा।
आदिवासी संस्कृति से बहुत कुछ सीखने का मिलता है अवसर
बेलारूस की एलिसा स्टूकोनोवा भी पहली बार छत्तीसगढ़ आई है। उन्होंने बताया कि जब उन्हें भारत के छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय आदिवासी महोत्सव में शामिल होने का आमंत्रण मिला तो वह खुद को बहुत ही भाग्यशाली समझी। यहाँ आने और कार्यक्रम को देखने के बाद सचमुच भारत के आदिवासी संस्कृति को नृत्य के माध्यम से देखने का अवसर मिला। एलिसा ने बताया कि शानदार आयोजन के साथ ही सरकार द्वारा विदेशी कलाकारों के ठहरने और अन्य व्यवस्था प्रशंसनीय है। घर में जैसे कोई अपने खास मेहमान को रखता है वैसा ही हमें भी रखा गया। एलिसा ने बताया कि उसके देश बेलारूस में भी खास अवसरों पर नृत्य उत्सवों का आयोजन होता है। उन्होंने इस महोत्सव को जनजाति समाज ही नही अन्य सभी समाज के लिए महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि आदिवासी नृत्य महोत्सव का प्रत्येक कार्यक्रम देखने वालों को प्रकृति के करीब ले जाने के साथ ही जीवन की विविधता को महसूस कराता है।