स्कूल शिक्षा मंत्री ने ‘असर 2019 : अर्ली ईयर्स’ का किया विमोचन

रायपुर(बीएनएस)। स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने आज यहां अपने निवास कार्यालय में ऐन्युअल स्टेटस ऑफ एज्युकेशन रिपोर्ट (असर 2019: अर्ली ईयर्स)’ का विमोचन किया। यह ‘असर’ की चौदहवीं वार्षिक रिपोर्ट है। प्रथम के राज्य समन्वयक गौरव शर्मा ने बताया कि ‘असर 2019’ देश के 24 राज्यों के 26 ग्रामीण जिलों के 1514 गांवों के 30 हजार 425 घरों के 36 हजार 930 बच्चों के साथ गतिविधियों के आधार पर किया गया है। छत्तीसगढ़ में यह सर्वेक्षण महासमुंद जिले के 60 गांवों के 1202 घरों में किया गया था। जिसमें 4 से 8 आयु वर्ग के लगभग 1503 बच्चों से बात-चीत की गई है।

असर रिपोर्ट वर्ष 2005 से प्रत्येक वर्ष बच्चों के स्कूल में नामांकन और बुनियादी पढ़ाई और गणित की दक्षता के बारे में सरकार और आम नागरिकों को विस्तृत जानकारी उपलब्ध करा रही है। प्रत्येक वर्ष ‘असर’ ने इस बात को उजागर किया है कि भारत के लगभग सभी बच्चे स्कूल में नामांकित हैं, परन्तु बहुत से बच्चे स्कूल तथा जीवन में आगे बढ़ने के लिए आवश्यक बुनियादी कौशल जैसे – पढ़ना एवं सरल गणित हल कर पाने की दक्षता हासिल नहीं कर पा रहे हैं। विमोचन कार्यक्रम में ‘असर’ के राज्य प्रभारी भूपेन्द्र जांगड़े, सनीत साहू, नागेश्वर साहू, विनीता द्विवेदी, तेजेश्वर मेश्राम आदि उपस्थित थे।

वर्ष 2019 में असर 4 से 8 आयु वर्ग के बच्चों पर केन्द्रित रहा। विश्व स्तर पर परिभाषित आयु वर्ग 0-8, मानवों के विकास जैसे संज्ञानात्मक विकास, शारीरिक विकास, सामाजिक और भावनात्मक विकास का सबसे महत्वपूर्ण चरण माना गया है। कई शोधों के अनुसार मस्तिष्क पर 80 प्रतिशत विकास छह वर्ष से पहले हो जाता है, चूंकि आज के सभी बच्चे आने वाले समय में देश के भविष्य हैं। अतः इन बच्चों पर सरकार और नागरिकों का ध्यान केन्द्रित करना आवश्यक है। इन्हीं कारणों से वर्ष 2019 का ‘असर’ 4 से 8 आयु वर्ग के बच्चों पर केन्द्रित था। इसमें बच्चों को मुख्य रूप से प्रारंभिक भाषा, संज्ञानात्मक विकास, प्रारंभिक गणित, सामाजिक एवं भावनात्मक विकास के कौशल आधारित गतिविधियों के द्वारा समझने की कोशिश की गई है। पिछले वर्षों के सामान ही ‘असर 2019’ भी घरों में किया गया और यह एक सैम्पल आधारित सर्वेक्षण था। इसमें चित्रों और विभिन्न रोचक गतिविधियों पर आधारित प्रश्नों का समावेश किया गया था।

असर 2019 के प्रमुख निष्कर्ष: महासमुंद, छत्तीसगढ़ महासमुन्द जिले के छह आयु वर्ग के 58.5 प्रतिशत बच्चे स्कूल आयु के अनुरूप कक्षा पहली में नामांकित हैं, जबकि रामगढ़ (झारखण्ड) में 34 प्रतिशत, नालंदा (बिहार) में 24.6 प्रतिशत, हिसार (हरियाणा) में 30.3 प्रतिशत, भोपाल (मध्यप्रदेश) में 34.5 प्रतिशत बच्चे ही स्कूल में आयु के अनुरूप कक्षा पहली में नामांकित हैं। इस प्रकार महासमुन्द जिले के छह वर्ष के बच्चों का आयु के अनुरूप कक्षा पहली में नामांकन पडोसी राज्यों के सर्वेक्षित जिलों से अधिक है।

सर्वेक्षित जिलों के आयु वर्ग 8 के केवल 60.5 प्रतिशत बच्चों ने ही प्राथमिक भावनाओं (खुशी, क्रोध, भय, उदास) की सही पहचान की थी, जबकि महासमुन्द जिले के 62.4 प्रतिशत बच्चों ने चारों भावनाओं की सही पहचान की थी। इस प्रकार महासमुन्द में आयु वर्ग के 8 बच्चों का सभी भावनाओं (खुशी, क्रोध, भय, उदास) की पहचान का प्रतिशत अन्य सभी सर्वेक्षित जिलों (राष्ट्रीय औसत) से भी अधिक है।

महासमुन्द जिले के कक्षा पहली में सरकारी विद्यालयों में बच्चों का नामांकन 74.7 प्रतिशत तथा निजी विद्यालयों में मात्र 25.30 प्रतिशत ही दिखाई दे रहा है। सरकारी विद्यालयों का यह आकड़ा पड़ोसी राज्यों की सर्वेक्षित जिलों की तुलना में अधिक है।  महासमुंद जिले के कक्षा तीसरी में नामांकित बच्चों का संज्ञानात्मक विकास एवं सुनकर समझने की गतिविधि में प्रदर्शन अन्य राज्यों के जिलों की अपेक्षा बेतहर है। संज्ञानात्मक विकास बच्चों के सर्वांगण विकास की महत्वपूर्ण कड़ी है। इसमें बेहतर प्रदर्शन उनके आगे की पढ़ाई का मार्ग प्रशस्त करता है।

असर टीम ने बताया कि जिन बच्चों की माताएं पढ़ी-लिखी हैं, उनके नामांकन की स्थिति और शैक्षणिक गतिविधियों में प्रदर्शन अन्य बच्चों की तुलना में बेहतर है। जिन बच्चों का संज्ञानात्मक विकास की गतिविधियों में प्रदर्शन अच्छा है उनका प्रारंभिक भाषा और गणित में प्रदर्शन बहुत अच्छा दिखाई दे रहा है। इस आधार पर शिक्षा सत्र के शुरूआत में कुछ माह अकादमिक गतिविधियों के स्थान पर संज्ञानात्मक, सामाजिक और भावनात्मक विकास पर केन्द्रित होना चाहिए। जिन बच्चों का आयु के अनुरूप अपनी कक्षा में नामांकन हुआ है। उनका प्रदर्शन कम उम्र में नामांकन लेने वाले बच्चों की तुलना में बेहतर है।

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