रायपुर(बीएनएस)। आदिवासी क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि करना अत्यन्त दुष्कर कार्य हैं। आदिवासी क्षेत्रों में अधिकांश भू-भाग पर घने वन स्थित हैं। कृषि योग्य भूमि की कमी हैं, सिंचाई साधन अत्यन्त कम हैं, परम्परागत ढंग से कृषि होती हैं तथा मिट्टी की गुणवत्ता निम्न स्तर की होने से कृषि पिछड़ी अवस्था में हैं। इन क्षेत्रों में बी.पी.एल. आबादी 50 प्रतिशत से अधिक हैं। लोगों की क्रय शक्ति कम होने के कारण व्यापार एवं उद्योग संबंधी गतिविधियां अत्यन्त सीमित हैं। 1980 में वन संरक्षण अधिनियम के प्रभावशील होने के बाद इससे वनों की अंधाधुंध कटाई पर रोक तो लगी किन्तु इससे वन क्षेत्रों के विकास में बाधा भी उत्पन्न हुई। आज भी वस्तुस्थिति यह हैं कि अभी भी जनजातीय क्षेत्रों में गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा एवं स्वास्थ्य सूचकांक मैदानी जिलों की तुलना में निम्न स्थान पर हैं।
सरकारों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती रही हैं कि किस तरह आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आय में वृद्धि की जाये, उन्हे भी जीवन की मूलभूत सुविधायें प्राप्त हो सके तथा वे अभावों से मुक्ति प्राप्त कर सकें। वर्ष 2013 में केन्द्र सरकार द्वारा कृषि उत्पादों की तरह ही 12 लघु वनोपजों के संग्रहण का निर्णय लिया गया। किन्तु छत्तीसगढ़ राज्य सहित अन्य राज्यों में भी लघु वनोपजों के संग्रहण में गंभीरता नहीं दिखाई गयी। जिसके कारण आदिवासी लघु वनोपजों को बिचौलियों एवं व्यापारियों को औने-पौने मूल्य पर बेचने को विवश हुए। उनका शोषण बदस्तूर जारी रहा और उनकी आय वृद्धि का एक महत्वपूर्ण उपाय अर्थहीन सिद्ध हो गया।
2011 की जनगणना के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य में आदिवासियों की जनसंख्या 78 लाख (कुल जनसंख्या का 32 प्रतिशत) हैं। राज्य के आदिवासियों की दशा देश के अन्य जनजातिय क्षेत्रों की तुलना में अपेक्षाकृत निम्न है, क्योंकि अन्य प्राकृतिक कठिनाईयों के अलावा राज्य के अधिकांश आदिवासी क्षेत्र वर्षों से नक्सल हिंसा से भी पीड़ित रहें है। राज्य में दिसम्बर 2018 में कांग्रेस की सरकार बनने पर राज्य के आदिवासियों के हितों के संवर्द्धन हेतु तथा उन्हे ‘न्याय‘ की अवधारणा से लाभान्वित करने हेतु अनेक ऐसे अभिनव कार्यक्रम आरंभ किये गये हैं जिनके दूरगामी परिणाम होगें और आदिवासियों की खुशहाली का नया दौर आरंभ होगा।
राज्य के आदिवासी अंचलों में बच्चों एवं महिलाओं में कुपोषण की दर 50 प्रतिशत तक है। यह स्थिति अत्यंत चिन्ताजनक है। राज्य सरकार ने ग्रामों मे ही 3 लाख बच्चों एवं महिलाओं को प्रतिदिन निःशुल्क पौष्टिक गरम भोजन उपलब्ध कराने की व्यवस्था 2 अक्टूबर 2019 से आरंभ की है। यह कार्य महिला स्व-सहायता समूहों के माध्यम से किया जा रहा है। इस अभियान के प्रारंभिक परिणाम उत्साह जनक रहे है। हमने यह ठाना है कि आगामी 3 वर्षों में राज्य को कुपोषण मुक्त किया जायेगा।
दूरस्थ आदिवासी अंचलों में स्वास्थ्य सुविधाओं का नितान्त अभाव है। दुर्गम वन एवं पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वालों के लिये डाक्टर की उपलब्धता स्वप्न की तरह ही थी। राज्य के आदिवासी इलाकों के लगभग 550 हाट बाजारों में 2 अक्टूबर 2019 से सभी हाट बाजार भरने के दिन मेडिकल टीम भेजने का निर्णय लिया। मेडिकल टीम के पास मोबाईल पैथालॉजी मशीन के साथ ही सभी आवश्यक दवाओं का पर्याप्त स्टाक भी होता है। अभी तक हाट बाजार में आने वाले लाखों मरीजों का उपचार किया जा चुका है।
आदिवासी अंचलों में अधोसंरचना विकास के स्थान पर व्यक्तियों की आय बढ़ाने वाली गतिविधियों को प्राथमिकता दी जा रही है। दन्तेवाड़ा देश के सबसे पिछड़े जिलों में से एक है, जहां 60 प्रतिशत से अधिक लोग बी.पी.एल. परिवारों की श्रेणी में है। हमने यह संकल्प किया है कि आगामी 4 वर्षो में दन्तेवाड़ा में गरीबी का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत (22 प्रतिशत) के बराबर या उससे नीचे लाना है। इसके लिये अनेक अभिनव कार्य आरंभ किये गये है।
आदिवासियों की आय का 25 से 50 प्रतिशत भाग लघु वनोपजों के संग्रहण एवं विक्रय से प्राप्त होता है। राज्य में अनेक प्रकार के लघु वनोपज जैसे इमली, महुआ, हर्रा, आंवला, लाख इत्यादि प्राकृतिक रूप से वनों में पाये जाते है। इन लघु वनोपजो का अनुमानित मूल्य 1100 करोड़ रूपये है। राज्य सरकार की ओर से तेन्दूपत्ता के अलावा अन्य लघु बनोपजो के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर संग्रहण की व्यवस्था न किये जाने के कारण वन क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों को संग्रहित वनोपजों को बिचौलियों एवं व्यापारियों को बेचना पड़ता था। जिसके कारण उन्हे 1100 करोड़ की आधी के बराबर भी राशि प्राप्त नही होती थी।
राज्य में कांग्रेस सरकार बनने के बाद हमने यह संकल्प लिया कि आदिवासियों द्वारा संग्रहित शत प्रतिशत वनोपजों के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने की पुख्ता व्यवस्था की जायेगी ताकि किसी भी आदिवासी को शोषण का शिकार न होना पड़े। वनोपजों के संग्रहण हेतु पूरे राज्य में 55,000 महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया। चूँकि आदिवासी लोग हाट-बाजारों के दिन ही बिचौलियों को अत्यन्त कम दरों पर लघु वनोपज का विक्रय करते थे, अतः हमने यह निर्णय लिया कि हाट-बाजारों में महिला स्व-सहायता समूहों के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर लघु वनोपजों का संग्रहण किया जाये। लधु वनोपज के संग्राहकों को हाट-बाजार में ही नकद भुगतान की व्यवस्था भी की गयी।
हमारे द्वारा लघु वनोपजों के संग्रहण हेतु की गयी समुचित व्यवस्था का ही परिणाम है कि इस सीजन में देश भर में संग्रहित कुल लघु वनोपजों का 80 प्रतिशत भाग सिर्फ हमारे राज्य में संग्रहित किया गया है। गत वर्ष तक महुआ का न्यूनतम समर्थन मूल्य 17/- प्रति किलो था। राज्य शासन की ओर से महुआ क्रय की कोई व्यवस्था न होने के कारण वनवासी भाई महुआ 13-15 रूपए प्रति किलो की दर से बिक्री करने के लिए विवश होते थे। हमने महुए का समर्थन मूल्य 17 रूपये से बढ़ाकर 30 रूपये प्रति क्विंटल पर क्रय की व्यवस्था की। आज स्थिति यह है कि व्यापारी महुए का क्रय 32 से 35 रूपये प्रति किलों की दर से कर रहे हैं। अन्य लघु वनोपजों की भी आदिवासियों को अधिक मूल्य प्राप्त हो रहा है।
वर्ष 2018 तक राज्य में तेन्दूपत्ता का संग्रहण 2500/-प्रति मानक बोरे की दर से किया जा रहा था। राज्य में हमारी सरकार बनने के बाद हमनें प्रति मानक बोरे की दरें 2500/- से बढ़ाकर 4,000/- कर दीं। ये दरें देश में सर्वाधिक हैं। इससे तेन्दूपत्ता संग्राहकों को 225 करोड़ रूपये का अतिरिक्त लाभ प्राप्त हो रहा है। इस तरह तेन्दूपत्ता के दो सीजन में वनवासियों को 450 करोड़ रूपये का अतिरिक्त लाभ प्राप्त हो चुका है। वन क्षेत्र में रहने वाले को वनोपजों से अधिकतम लाभ दिलाये जाने के लिये शासन की ओर से लघु वनोपजों के संग्रहण, प्रसंस्करण एवं माकेटिंग की उपयुक्त व्यवस्था किये जाने से राज्य के वन क्षेत्रों में रहने वाले 12 लाख परिवारों को इस वित्तीय वर्ष में 2500 करोड़ रूपये की आय होना संभावित हैं। इस तरह प्रति परिवार लगभग 20 हजार रू. आय प्राप्त होगी।
राज्य में वन क्षेत्रों में परम्परागत रूप से निवास करने वाले 4.18 लाख लोगों को वनाधिकार पट्टे दिये गये हैं। इनके पट्टों की भूमि घने वन क्षेत्रों में स्थित होने तथा भूमि खेती योग्य न होने के कारण उन्हें इससे कोई विशेष लाभ प्राप्त नहीं हो रहा है। राज्य सरकार ने यह निर्णय लिया है कि इन पट्टेधारियों की भूमि सुधार कर तथा सिंचाई की व्यवस्था कर उसमें मिश्रित प्रजातियों के फलों, लघु वनोपजों एवं वनौषधियों का रोपण किया जाये, जिससे आगामी एक वर्ष में ही उन्हे प्रतिवर्ष एक निश्चित आय प्राप्त होना आरंभ हो सके। इस सम्पूर्ण कार्य पर होने वाले व्यय का वहन शासन द्वारा किया जायेगा।
शासन द्वारा आरंभ की गयी अभिनव योजनाओं के माध्यम से वन क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों को कुपोषण के दंश से मुक्ति मिलेगीं, स्वास्थ्य सूचकांक बेहतर होंगे तथा आय वृद्धि से जीवन स्तर में सुधार होगा। जिससे दशकों से पिछड़ेपन एवं अभावों में जीवन यापन करने वालों हेतु न्याय सुनिश्चित किया जा सकेगा।