दो साल पहले की ही बात है। इस गाँव की तस्वीर ऐसी न थीं। अपने गाँव से विवाह के बाद आई टुकेश्वरी एमए पास है तो क्या हुआ ? उसके पास कोई काम न था। गाँव वालों के अपने खेत तो थे, लेकिन इन खेतों में हरियाली सिर्फ बारिश के दिनों में ही नजर आती थीं। फसल बोते थे लेकिन दाम सहीं नहीं मिलने से कर्ज में लदे थे। गाँव का गणेश, रामाधार हो या सेन काका.. सभी अपने गांव को खुशहाल देखना चाहते थे। दुलारी के पति सालों पहले स्वर्ग सिधार गए थे, घर पर बच्चों की जिम्मेदारी उस पर तो थी ही लेकिन हाथों में कोई काम नहीं होने की चिंता उसे हर घड़ी सताया करती थी। चरवाहा मंगतू यादव… गाय तो चराता था लेकिन सैकडों गाय को चराने के बाद भी उसे थोड़ा आराम और सभी पशु मालिकों से कुछ रुपया मिल जाए इसकी भी गारण्टी न थी। गाय का गोबर तो बस गोबर ही था, जहाँ तहां पड़ा हो तो वहीं सूखकर मिट्टी में मिल जाता था, हां कुछ लोग कभी कंडे तो कुछ लोग खाद बना जरूर लिया करते थे मगर गोबर को अधिक उपजाऊ खाद और अधिक पैसे का सपना कभी देखा ही नहीं था। कमोवेश गांव में दुर्गेश्वरी बाई, गीता, जानकी, सावित्री, अनिता, लक्ष्मी यादव सहित अनगिनत महिलाएं थीं जिनका दिन बस घर की चहारदीवारी में ही कट जाती थीं या फिर किसी-किसी के खेत-खलिहानों में मजदूरी करते बीत जाती थी। भले हीं यह गांव राजधानी से कुछ किलोमीटर में है तो क्या हुआ? एक से डेढ़ बरस पहले तक इस गांव की कोई विशेष पहचान न थी। अब तो यह गांव किसी पहचान का मोहताज नहीं है। घर-घर की महिलाएं भी आत्मनिर्भरता की राह में हैं। राजीव गांधी किसान न्याय योजना से फसल का दाम मिलने से किसानों में खुशी और खेतों में हरियाली है। किसी के गाय-बैलें यूं ही नहीं भटकते। गोबर की भी कीमत है। चरवाहों को पशु मालिकों से कुछ मिले न मिले, उनके खाते में गोबर से रुपए मिलने की गारण्टी है। गांव में पक्की गलियां, सुंदर बगीचा, स्वच्छ तालाब भी है। सच्चाई को बयां करती यह कहानी है रायपुर जिले के आरंग विकासखण्ड के ग्राम बनचरौदा की।
राजधानी से कुछ किलोमीटर दूर ग्राम बनचरौदा विकास की उस राह पर अग्रसर है जो कभी महात्मा गांधी जी का सपना हुआ करता था। गांधी जी का कहना था कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है। उन्होंने परिकल्पना की थी कि ग्रामीण विकास की तमाम आवश्यकताओं की पूर्ति करके ग्राम स्वराज्य, पंचायतराज, ग्रामोद्योग, महिलाओं की शिक्षा, गांव की सफाई व गांव का आरोग्य व समग्र विकास के माध्यम से एक स्वावलंबी व सशक्त देश के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है। उन्होंने अपने सपनों के भारत में गांव के विकास को प्रमुखता प्रदान करके उससे देश की उन्नति निर्धारित होने की बात कही थी। बनचरौदा गांधी जी की परिकल्पनाओं पर खरा उतरने की दिशा में कदम बढ़ा चुका है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा प्रदेश में नरवा, गरवा, घुरवा और बाड़ी के विकास को बढ़ावा देने के साथ ही गांधीजी के गांव को सशक्त बनाने का सपना सच होता हुआ आगे बढ़ रहा है। ग्राम बनचरौदा इस पायदान में आगे निकल चुका है। गांव में लगभग 20 स्व-सहायता महिला समूह है जिससे 217 महिलाएं बतौर सदस्य जुड़ी है। गांव को सशक्त बनाने में इन महिला स्व-सहायता समूह के सदस्यों और सरपंच श्री के के साहू भी का बड़ा योगदान है। असल में यहीं नारी शक्ति है जो जागरूक है और गांव के विकास की इबारत लिखने में बखूबी अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहीं है।
अब अपने बच्चे को इंग्लिश मीडियम में पढ़ा रहीं टुकेश्वरी
अन्नपूर्णा स्व-सहायता महिला समूह से जुड़ी श्रीमती टुकेश्वरी एमएम पास है। अभी सब्जी-बाड़ी का काम सम्हाल रहीं है। पहले बेरोजगार रहने से कोई आमदनी नहीं थी। श्रीमती टुकेश्वरी ने बताया कि मनरेगा के माध्यम से ढाई एकड़ खेत में सब्जियों का उत्पादन करते हैं। इसकी आमदनी से घर का अतिरिक्त खर्चा निकल जाता है। उसने बताया कि अपनी आमदनी के रुपए से एक बच्चे को इंग्लिश मीडियम स्कूल में भरती करा पढ़ाई करा रहीं है। गांव की ही श्रीमती अनिता, सावित्री ध्रुव, जानकी साहू सहित अनेक महिलाएं है जो पहले अपनी आमदनी के लिए मजदूरी पर निर्भर थी। सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक काम करने पर ही कुछ रुपए कमा पाती थी। स्व-सहायता समूह से जुड़ने के बाद बाड़ी के माध्यम से अपने-अपने घरों के लिए सब्जियां भी उगा पाती है और इसे बेचकर आमदनी भी प्राप्त कर रहीं है।
गोबर के दीये से ढ़ाई लाख, गमले से डेढ़ लाख रुपए कमाए और सवा लाख रुपए की खाद भी बेची
गांव में गोठान बनाया गया है। यहां गौ-उत्पाद से निर्मित सजावटी सामान और कलाकृतियों को भी अच्छी प्रसिद्धि हासिल हो रहीं है। पिछले साल ढाई लाख रुपए से अधिक के दीयें और डेढ़ लाख रुपए से अधिक के बायों गमले भी बेच चुकी है। इस गोठान में धनलक्ष्मी स्व-सहायता समूह वर्मी कम्पोस्ट बनाने के साथ उसका विक्रय कर रहीं है। इस समूह की श्रीमती गीता साहू बताती है कि वर्तमान में गोधन न्याय योजना से खरीदे गए गोबर को जैविक खाद बनाने का काम चल रहा है। एक माह के भीतर यह खाद तैयार हो जाएगा। उन्होंने बताया कि 162 क्विंटल खाद बेच चुके हैं और जल्दी ही स्टाक में बचे खाद की भी बिक्री की जाएगी। खाद विक्रय से एक लाख रुपए से अधिक की आमदनी हुई है। गोठान में एक दिन में 20 से 30 क्विंटल के बीच गोबर निकलता है। सभी को खाद बनाने के लिए उपयोग किया जा रहा है। भावना स्व-सहायता समूह की साधना वर्मा ने बताया कि उनका समूह साबुन और अगरबत्ती का निर्माण करता है। बिहान साबुन में तुलसी, लेमन, गुलाब और चारकोल वेरायटी बाजार में बनाकर बेचती है। साधना और पूर्णिमा ने बताया कि वह दसवीं पास है और अब चाहती है कि कुटीर उद्योग की सहायता से आत्मनिर्भर की राह में आगे बढ़े।
महकने लगी है रजनीगंधा की सुगंध, आमदनी भी होगी
महालक्ष्मी स्व-सहायता समूह की महिलाएं उद्यानिकी विभाग की मदद से फूलों की खेती से भी अपनी किसमत आजमा रहीं है। समूह की दिनेश्वरी ठाकुर ने बताया कि रजनीगंधा फूलों की खेती की जा रही है। फूल खिलकर महकने लगे हैं। आने वाले दिनों में इसकी खेती समूह की सदस्यों को रोजगार से जोड़ने के साथ आमदनी से भी जोड़ देगी। पिछले साल बाड़ी में सब्जियों के साथ गेंदा फूल की खेती की गई थी, जिसे 70 रुपए प्रतिकिलो तक बेचा गया था। इससे भी गांव वालों की आमदनी हुई थी।
गोधन न्याय योजना से बढ़ रहीं चरवाहें सहित गौ-पालकों की आमदनी
गांव में पशुओं को चराने की जिम्मेदारी निभाने वाले चरवाहा श्री मंगतू राम यादव, हिरऊ यादव ने बताया कि पहले पशुओं को आसपास के जंगल में चराने के लिए ले जाना पड़ता था। कोई निश्चित ठिकाना नहीं होने से पशु पानी और चारे के लिए भटकते थे। इसलिए गोबर भी एकत्रित करना मुश्किल था। अब गोठान के माध्यम से पानी, छायादार शेड और चबूतरा मिल गया है। गोधन न्याय योजना से गोबर की खरीदी होने से वह अपने परिवार समेत गोबर को एकत्रित कर वह प्रतिदिन दो से चार क्विंटल गोबर बेच पाता है। उसने बताया कि अब गोबर और पशुओं की अहमियत बढ़ गई है। गांव का 60 वर्षीय भरत राम सेन ने बताया कि उनके पास भी 6 गायें हैं और वह भी गोबर एकत्र कर बेचता है।
अपने पतियों को भी रोजगार दे रहीं है ये महिलाएं
बनचरौदा ग्राम की अनेक महिलाएं आत्मनिर्भर बनने के साथ अपने बेरोजगार पतियों को भी रोजगार दे रहीं है। बाड़ी में सब्जी उत्पादन कर उसे बाजार तक ले जाने और बेचने में महिलाओं के पति सहयोग देते है। समूह द्वारा उन्हें वाहन के पेट्रोल और चाय नाश्तें के लिए रुपए भी देती है। पुरूष सदस्यों को दी जाने वाली सामग्रियों का ये पूरा हिसाब-किताब रखती है। इसी तरह साबुन, अगरबत्ती, गौ-उत्पाद, मछली आदि की बिक्री में पुरूषों की भागीदारी रहती है।
* विष्णु वर्मा/कमलज्योति