मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा किसानों की बेहतरी के लिए उठाए गए कदमों से उन्हें किसान हितैषी मुख्यमंत्री के रूप में नई पहचान मिली है। छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतों को सहेजते हुए मुख्यमंत्री ने जमीनी हकीकतों पर केन्द्रित विकास का छत्तीसगढ़ी माडल विकसित किया, जिसके केन्द्र में किसान, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग और जरूरतमंद लोग हैं। उन्होंने गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ का नारा दिया। उन्होंने अपने छत्तीसगढ़ी माडल में छत्तीसगढ़ की चार चिन्हारी नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी के विकास को गांवों के उत्थान का माध्यम बनााया है।
मुख्यमंत्री श्री बघेल ग्रामीण परिवेश में पले बढ़े हैं इसलिए वे ग्रामीण अर्थव्यवस्था की नब्ज को भली भांति पहचानते हैं। किसानों की कठिनाईयों, उनकी आवश्यकताओं और खेती-किसानी की उन्हें गहरी जानकारी है। वे गांव की सामाजिक आर्थिक स्थिति और वहां के जनजीवन से भी बखूबी वाकिफ हैं। सक्रिय राजनीति में रह कर भी वे हमेशा गांव, किसान, मजदूर से जुड़े रहे। यही कारण है कि विधानसभा चुनावों में प्रचंड बहुमत मिलने के बाद जब उन्होंने मुख्यमंत्री का पद सम्हाला तो सबसे पहले गांव, किसान और मजदूर की ओर ध्यान दिया। पिछले डेढ़ साल में उन्होंने जमीनी हकीकतों पर आधारित अनेक व्यावहारिक योजनाएं शुरू की, जिनके परिणाम जल्द ही दिखने लगे। राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के जरिए किसानों, आदिवासियों और वनवासियों की जेब में 70 हजार करोड़ रूपए डाले गए, जिसके कारण लॉकडाउन के दौरान, जब देश के दीगर हिस्सों में आर्थिक गतिविधियां थमी हुई थी, तब छत्तीसगढ़ आर्थिक मंदी से अछूता रहा।
सबसे पहले उन्होंने किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए 25 सौ रूपए धान की कीमत देने, कर्जमाफी और सिंचाई कर की माफी का वादा निभाया, इसके चलते खेती से विमुख हो रहे लोगों ने फिर से खेती की ओर रूख किया। उन्होंने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए सुराजी गांव योजना लागू की। देश दुनिया में पहली बार गोबर की खरीदी के लिए गोधन न्याय योजना शुरू की। उनके इस साहसिक कदम ने पशुपालकों को आर्थिक संबल दिया। गांवों में गौठान और रोकाछेका की व्यवस्था ने दूसरी और तीसरी फसल की राह खोल दी। गौठानों में खरीदे जाने वाले गोबर से वर्मी कम्पोस्ट तैयार कर इसकी बिक्री सहकारी समितियों के माध्यम की जाएगी, इससे प्रदेश जैविक खेती की ओर बढ़ेगा, वहीं ग्रामीणों को सतत रूप से रोजगार मिलेगा। उन्होंने किसानों को बेहतर सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने पांच वर्षों में प्रदेश में वर्तमान सिंचाई क्षमता दोगुना करने का लक्ष्य रखा है।
मुख्यमंत्री ने कोरोना काल में किसानों को मुश्किल दौर से बचाने के लिए ‘राजीव गांधी किसान न्याय योजना‘ की शुरूआत की। इस योजना में राज्य सरकार किसानों को आदान सहायता राशि के रूप में चार किश्तों में 5750 करोड़ की राशि दे रही है। इसकी 15-15 सौ करोड़ की दो किश्ते दी जा चुकी हैं। धान उपजाने वाले किसानों को धान की अच्छी कीमत हमेशा मिलती रहे किसान समर्थन मूल्य पर ही आश्रित न रहें, इसके लिए उन्होंने धान से एथनाल बनाने पर काम शुरू करने की पहल की है। इसके लिए निजी कम्पनियों से एमओयू भी किया जा चुका है।
गांवों की अर्थव्यवस्था मजबूत बनाने के लिए सुराजी गांव योजना में नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी को सहेजने का काम शुरू किया। छत्तीसगढ़ के हर गांव में गौठानों का निर्माण लक्ष्य है। गौठानों में पशुधन के लिए चारे पानी का इंतजाम कर डे-केयर की सुविधा दी जा रही है। गांव के लोगों को रोजगार से जोड़ने के लिए गौठानों में युवाओं की आर्थिक गतिविधि के लिए एक एकड़ जमीन की व्यवस्था की गई है। नरवा कार्यक्रम में 13 सौ नालों के पुनर्जीवन के लिए कार्य योजना तैयार की गई है। इन योजनाओं के पूरा होने पर सतही जल का उपयोग सिंचाई के लिए किया जाएगा, इससे भूजल का स्तर बढ़ेगा वहीं पर्यावरण सुधरेगा। गांवों में बाड़ी कार्यक्रम और घुरवा के जरिए जैविक खाद और जैविक सब्जी और फल का उत्पादन हो सकेगा।
मुख्यमंत्री ने पिछले डेढ़ वर्षो में वनांचल के लोगों पर भी पूरा ध्यान दिया है। बस्तर संभाग में वर्षों से लंबित बोधघाट बहुउद्देशीय सिंचाई परियोजना का काम आगे बढ़ा है। इस योजना के बनने से लगभग तीन लाख हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा मिलेगी। समर्थन मूल्य पर खरीदे जाने वाले लघुवनोपज की संख्या 7 से बढ़ाकर 31 कर दी गई है। तेन्दूपत्ता संग्रहण की दर प्रति मानक बोरा 2500 रूपए से बढाकर 4000 रूपए की गई है, जो देश में सर्वाधिक है। तेन्दूपत्ता श्रमिकों को वर्ष 2018 में तेन्दूपत्ता लाभांश के रूप में 232 करोड़ रूपए की राशि उनके खातों में डाली गई है। तेन्दूपत्ता संग्राहकों के लिए शहीद महेन्द्र कर्मा सामाजिक सहायता योजना भी शुरू की गई है। इस योजना में तेन्दूपत्ता संग्राहकों को प्रीमियम राशि नहीं देनी होगी। लगभग साढे़ 12 लाख संग्राहक परिवारों को लाभ मिलेगा। राज्य सरकार कृषि और वनोपज आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने के साथ प्रदेश के पिछड़े इलाकों में उद्योगों की स्थापना की रणनीति पर आगे बढ़ रही है।
राज्य सरकार द्वारा अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में व्यावसायिक शिक्षा, छोटे भूखंडों के पंजीयन और भूमि की खरीदी बिक्री की गाइड लाइन में 30 प्रतिशत की छूट जैसे निर्णय लिए जाने से शहरों की अर्थव्यवस्था में गति आयी है। शहरों में रिक्त भूमि का व्यावसायिक इस्तेमाल, मेडिकल कालेजों की स्थापना जैसे अनेक कदम उठाए जा रहे हैं। स्वास्थ्य के क्षेत्र में डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना, मुख्यमंत्री विशेष स्वास्थ्य सहायता योजना, मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान, हाट बाजार क्लिनिक योजना, शहरी स्लम स्वास्थ्य योजना जैसे बड़े कार्यक्रम शुरू किए गए हैं।
मुख्यमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस की 73वीं वर्षगांठ पर प्रदेशवासियों को अनेक सौगातें दी है। इनमें ‘डॉ. राधाबाई डायग्नोस्टिक सेंटर योजना’, जैसी महत्वपूर्ण योजना भी शामिल है। जिसमें रियायती दरों पर पैथोलॉजी तथा अन्य जांच सुविधाएं उपलब्ध कराएगी। स्कूली बच्चों की पढ़ाई के लिए ‘पढ़ई तुंहर दुआर‘ में समुदाय की सहभागिता से ‘पढ़ई तुंहर पारा‘ योजना‘ और घर पहुंच नागरिक सेवाएं देने के लिए ’मुख्यमंत्री मितान योजना’ शुरू की जाएगी। विद्युत के पारेषण-वितरण तंत्र की मजबूती के लिए ‘‘मुख्यमंत्री विद्युत अधोसंरचना विकास योजना भी प्रारंभ की जाएगी। इसी प्रकार ‘महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, मरवाही में महंत बिसाहू दास जी के नाम से उद्यानिकी महाविद्यालय सहित 4 नए उद्यानिकी कॉलेज तथा एक खाद्य तकनीकी एवं प्रसंस्करण कॉलेज, दुग्ध उत्पादन और मछली पालन को बढ़ावा देने 3 विशिष्ट पॉलीटेक्निक कॉलेज भी खोले जाएंगे। राज्य सरकार प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के प्रयास कर रही है। राम वन गमन पथ विकसित करने के लिए 137 करोड़ रूपए का कॉन्सेप्ट प्लान तैयार किया गया है, जिस पर काम शुरू हो गया है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में नई सरकार के फैसलों ने प्रदेशवासियों को नई आशा और उत्साह भर दिया है। किसानों, आदिवासियों, गरीबों मजदूरों सहित सभी वर्गों के हित में उठाए जा रहे कदमों से जहां छत्तीसगढ़ की ग्रामीण कृषि आधारित अर्थव्यवस्था मजबूत होगी वहीं राज्य के उद्योग और व्यवसाय भी फलेंगे-फूलेंगे। पुरखों के सपनों के अनुरूप समृद्ध और खुशहाल छत्तीसगढ़ गढ़ने का सपना साकार होगा।
* ए.पी. सोलंकी, जी.एस. केशरवानी