प्रदेश में लगभग एक तिहाई आबादी अनुसूचित जनजातियों की है। आदिवासी अंचलों के विकास के लिए राज्य सरकार द्वारा तेजी से नए फैसले लिए जा रहे है। इन फैसलों को तेजी से क्रियान्वित किया जा रहा है। वनांचल में रहने वाले आदिवासी समुदाय के जनजीवन को आसान बनाने के लिए नए रास्ते तलाशने शुरू कर दिए हैं। स्थानीय लोगो को मूलभूत सुविधाएं देने का मुद्दा हो या रोजगार का मुद्दा हो इन सभी क्षेत्रों पर ध्यान दिया जा रहा है। आदिवासी समुदाय की संस्कृति संरक्षण के लिए राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया गया। यह महोत्सव अब राज्योत्सव के समय आयोजित होगा।
राज्य सरकार की नई औद्योगिक नीति ‘गढ़बो नवा छत्तीसगढ़‘ की मूल भावना पर आधारित है। इस नीति के माध्यम से आदिवासी अंचलों के विकास में तेजी आएगी और रोजगार के अवसर तेजी से बढ़ेंगे। उद्योग नीति में पिछड़े क्षेत्रों या विकासखंडों को सबसे अधिक रियायत और संसाधन देने का फैसला किया गया है। कोण्डागांव जिले के ग्राम कोकड़ी में 5 करोड़ रूपए की लागत से सहकारी क्षेत्र में मक्का प्रोसेसिंग यूनिट, जिला मुख्यालय सुकमा और बस्तर जिले के धुरागांव में फूड पार्क का शिलान्यास किया गया है।
नई सरकार ने बस्तर के लोहांडीगुड़ा और तोकापाल में उद्योग के लिए अधिग्रहित की गई भूमि आदिवासी किसानों को वापस करने का निर्णय लिया। राज्य में उत्पादित होने वाले हर्बल वनौषधि तथा लघु वनोपज आधारित उद्योगों को उच्च प्राथमिकता के अंतर्गत अधिकतम व्याज अनुदान, नेट जीएसटी प्रतिपूर्ति, स्टाम्प ड्यूटी छूट विद्युत शुल्क छूट देने का प्रावधान किया गया है। सरगुजा एवं बस्तर क्षेत्र में 20 एकड़ के निजी औद्योगिक क्षेत्रों की स्थापना को अनुमति देते हुए इस पर 4 करोड़ रूपए तक का अधोसंरचनात्मक विकास कार्यो के विरूद्ध अनुदान के रूप में दिए जाने का प्रावधान किया गया है।
नए उद्योगों में स्थानीय लोगों को अनिवार्य रूप से रोजगार देने का प्रावधान है। वनांचलों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों आदिवासी युवाओं को प्राथमिकता से रोजगार देने के लिए राज्य सरकार ने बस्तर, सरगुजा तथा बिलासपुर संभाग के लिए कनिष्ठ कर्मचारी चयन बोर्ड के गठन का निर्णय लिया गया है। विशेष पिछड़ी जनजातियों के युवाओं को स्थानीय स्तर पर नौकरी देने के लिए नियमों को शिथिल किया गया है। एनएमडीसी के नगरनार प्लांट में ग्रुप डी और सी की भर्ती परीक्षा दंतेवाड़ा में कराने का निर्णय लिया गया है।
वनांचल क्षेत्रों में वनोपज का कारोबार लगभग 18 सौ करोड़ रूपए का होता है, इसे देखते हुए आदिवासी लघु वनोपजों के समर्थन मूल्य पर खरीदी का दायरा भी बढ़ा दिया है। अब 22 वनोपजों की खरीदी समर्थन मूल्य पर की जा रही है। आदिवासी समाज में मातृ-शक्ति को और सशक्त बनाने के लिए वनोपजों के कारोबार से महिला समूहों की 50 हजार से अधिक सदस्याओं को जोड़ने का फैसला लिया है।
सरकार ने प्रदेश में तेन्दूपत्ता संग्रहण मजदूरी को 2500 से बढ़ाकर 4000 रूपए प्रति मानक बोरा कर दिया है, ताकि संग्राहकों की आमदनी में तुरंत और सीधी बढोत्तरी हो जाए। वर्ष 2019 में 15 लाख मानक बोरा से अधिक तेन्दूपत्ता संग्रहण हुआ, जिसके एवज में 602 करोड़ रूपए मजदूरी का भुगतान किया गया। यह राशि पिछले वर्ष की तुलना में 226 करोड़ रूपए अधिक है।
बस्तर की जीवनदायिनी नदी इन्द्रावती को बचाने के लिए प्राधिकरण का गठन किया गया है। नदी तट कटाव में कमी लाने के लिए इन्द्रावती, खारून और अरपा नदियों के 462 हेक्टेयर क्षेत्र में छह लाख पौधों का रोपण किया जा रहा है। वर्तमान में राज्य की सिंचाई क्षमता 10.38 लाख हेक्टेयर है जो कुल कृषि योग्य भूमि का 18 प्रतिशत है। राज्य में सिंचाई परियोजनाओं को तेजी से पूरा करने के लिए सिंचाई विकास निगम गठित करने का निर्णय लिया गया है।
अनुसूचित क्षेत्रों में पेसा कानूनों को प्रभावी बनाने के लिए उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया है। जाति प्रमाण-पत्र बनाने की प्रक्रिया को सरल करते हुए पिता की जाति के आधार पर नवजात को जाति प्रमाण पत्र दिए जा रहे हैं। जिन निर्दोश लोगों को झूठे मामलों, मुकदमों में फसाया गया था उन्हें न्याय दिलाने के लिए जस्टिस पटनायक आयोग का गठन किया गया है। बस्तर, सरगुजा आदिवासी प्राधिकरण में पहले मुख्यमंत्री अध्यक्ष होते थे और अब क्षेत्रीय परिदृश्य के जानकार विधायकों को इस प्राधिकरणों के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी गई है।
सामुदायिक वन आधिकार दिया जाना राज्य सरकार की प्राथमिकता है। कोण्डागांव जिले के 9 गांवों में 9 हजार 220 एकड़ जमीन के पट्टे, धमतरी जिले के नगरी विकासखंड के जबर्रागांव में लगभग साढ़े 12 हजार एकड़ भूमि के सामुदायिक वन अधिकार पट्टे दिए गए हैं। वन अधिकार कानून के अंतर्गत व्यक्तिगत दावों पर पुनर्विचार किया जा रहा है। दूर-दूर फैले गांवों का नए सिरे से परिसीमन कराकर उन्हें पंचायतों का दर्जा दिया गया है। पंचायत प्रतिनिधियों के निर्वाचन में 5वीं और 8वीं कक्षा की अनिवार्यता समाप्त कर दी है।
प्री-मैटिक छात्रावास एवं आवासीय विद्यालयों, आश्रमों के बच्चों की शिष्यवृत्ति बढ़ाकर 1000 रूपए प्रतिमाह की गई है। प्रदेश में 16 नवीन एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय शुरू किए गए है। मैट्रिकोत्तर छात्रावास के विद्यार्थियों की छात्र भोजन सहाय राशि 500 रूपए प्रतिमाह से बढ़ाकर 700 रूपए प्रतिमाह की गई है। हॉट बाजारों में चिकित्सा सुविधा दी जा रही है। सुपोषित छत्तीसगढ अभियान, ‘मेहरार चो मान‘ जैसे कार्यक्रम लोक अभियान प्रारंभ किए गए हैं।
- जी.एस. केशरवानी