आओं लाए हरियाली, गौ-काष्ठ की जलाए होली, इकोफ्रेंण्डली होली मनाकर पर्यावरण संरक्षण में निभा सकते हैं अपनी भूमिका

रायपुर(बीएनएस)। नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ शिवकुमार डहरिया ने प्रदेश के सभी नगरीय निकायों के अंतर्गत होने वाले दाह संस्कार में गौ-काष्ठ के उपयोग को प्राथमिकता से करने का निर्देश पहले से ही जारी किया हुआ है। अब उन्होंने पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए होलिका दहन में गौ-काष्ठ और कण्डे के उपयोग करने की अपील की है। कुछ माह पहले ही गौ-काष्ठ को लेकर जारी उनके निर्देशों अमल भी हुआ है। जागरूक एवं पर्यावरण के प्रति सचेत नागरिक, समाजसेवी गौ-काष्ठ और गोबर से कण्डे से दाह संस्कार भी करने लगे हैं। इससे बड़ी संख्या में पेड़ों की कटाई रूकी है। चूंकि होली जैसे पर्व में सर्वाधिक पेड़ों की कटाई होती है। जिससे पर्यावरण असंतुलन का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में इकोफ्रेण्डली होली और गौ-काष्ठ का उपयोग बहुत बड़ी संख्या में हरे-भरे पेड़ों की कटाई पर अंकुश लगाने के साथ पर्यावरण के संतुलन को सतत् बनाए रखने में मददगार साबित हो सकती है।

वैसे प्रदूषण को लेकर अक्सर चर्चाएं होती है। निःसंदेह छत्तीसगढ में वायु प्रदूषण की स्थिति अन्य कई राज्यों की तुलना में बेहतर तो है। औद्योगिक जिला सहित शहरी इलाकों में शुद्ध वायु की कमी है। इसके लिए जरूरी है कि हम अधिक से अधिक पौधे लगाए और पेड़ों को कटने से बचाए। छत्तीसगढ़ राज्य का भौगोलिक क्षेत्रफल 1,35,191 वर्ग किलोमीटर है, जो देश के क्षेत्रफल का 4.1 प्रतिशत है। राज्य का वन क्षेत्र लगभग 59,772 किलोमीटर है, जो राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का 44.21 प्रतिशत है। ऑक्सीजन का एकमात्र स्रोत वृक्ष है। इसलिए वृक्ष पर ही हमारा जीवन आश्रित है। यदि वृक्ष ही नहीं रहेंगे तो किसी भी जीव जंतु का अस्तित्व नहीं रहेगा। छत्तीसगढ़ की सरकार ने गौ- काष्ठ के इस्तेमाल को लेकर जो आदेश जारी किया है, वह आने वाले समय में पर्यावरण संरक्षण और वृक्षों की अंधाधुंध कटाई पर रोक लगाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। यह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके सरकार के सदस्यों की सोच थी कि नरवा, गरवा, घुरवा बाड़ी का मॉडल तैयार किया गया। इस दिशा में कदम आगे बढ़ाते हुए सरकार ने अपनी संकल्पना को साकार भी करके दिखाया। नगरीय निकाय क्षेत्रों में होने वाले दाह संस्कार और ठण्ड के दिनों में जलाए जाने वाले अलाव में लकड़ी की जगह गोबर से बने गौ-काष्ठ और कण्डे के उपयोग को जरूरी किया जाना सरकार के दूरदर्शी सोच का हिस्सा है। अब होली जैसे पर्व में यदि पेड़ों की कटाई को रोकने की दिशा में गौ-काष्ठ और गोबर के कण्डे का उपयोग सुनिश्चित किया जाएगा तो निश्चित ही यह पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक सरोकार, की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।

आप सभी को मालूम होगा कि बीते साल के आखिरी महीने में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा वायु प्रदूषण के चलते उतरी एवं मध्य भारतीय राज्यों में भारी आर्थिक क्षति होने की रिर्पोट भी जारी की गई थी। आईसीएमआर ने उत्तर प्रदेश और बिहार में वायु प्रदूषण की स्थिति खराब होने का जिक्र किया था। लासेंट प्लेनेटरी हेल्थ में प्रकाशित रिपोर्ट इंडिया स्टेट लेबल डिजीज बर्डन इनीसिएटिव के मुताबिक वायु प्रदूषण के कारण देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद के 1.4 फीसदी के बराबर की क्षति हो रही है। यह चिंता का विषय है और वायु प्रदूषण को लेकर ठोस रणनीति के साथ आगे आना होगा।

एक अनुमान के अनुसार होली जैसे पर्व में एक होली के पीछे दो से तीन क्विंटल लकड़ियां जला दी जाती है। शहरों सहित कई इलाकों में होलिका दहन की औपचारिकता की खातिर आस-पास के हरे-भरे पेड़ काट दिए जाते हैं और पुराने टायरों को भी आग में झोंक दिया जाता है। शहरों में बनने वाली होली की संख्या ही बहुत अधिक होती है। सामूहिक के अलावा अनेक लोग अपने घरों के आसपास होलिका जलाते हैं। इकोफ्रेण्डली होली की अपील और प्रतिदिन हो रहे दाह संस्कार में गौ काष्ठ के इस्तेमाल को बढ़ावा देने से एक ओर जहां वायु प्रदूषण में कमी आएगी वहीं इस पहल से साल भर में लाखों पेड़ों की बलि नहीं चढ़ेगी और हमारी अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव नहीं पड़ेगा।

गौ सेवा की दिशा में सतत् कार्य कर रही एक पहल सेवा समिति के उपाध्यक्ष रितेश अग्रवाल का कहना है कि होली और दाह संस्कार को इको फ्रेण्डली बनाने की दिशा में लगातार जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। पिछले साल भी इकोफ्रेण्डली होली जलाई गई थी और दाह संसकर में गौ-काष्ठ सहित गोबर के कण्डे का लगातार उपयोग किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि गौ-काष्ठ से होलिका दहन, दाह संस्कार बहुत आसान और पर्यावरण के लिए उपयोगी है। उन्होंने कहा कि लोगों को अपनी धारणाएं बदलनी होगी ताकि हम शुद्ध हवा में सांस ले सके।

स्वाभाविक है कि गोठानों के संचालन से प्रदेश में गौ संरक्षण को बढ़ावा मिलने लगा है और गोबर उत्पादों के साथ रोजगार के नये विकल्प भी बनने लगे हैं। सरकार द्वारा गोबर को दो रुपए प्रति किलों की दर से खरीदे जाने के बाद पशुपालकों की आमदनी भी बढ़ी है। इससे आर्थिक सशक्तीकरण को भी बल मिला है।

बीते साल कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से उबरने के बीच पुनः कोरोना के बढ़ते प्रभाव ने सभी को चिंता में डाल दिया है। एक बार फिर कठिन समय में हम होली जैसे पर्व को मनाने की तैयारी कर रहे हैं। जरा सी लापरवाही और असावधानी हमें ही नहीं, परिवार सहित हमारे परिचितों को भी खतरे में डाल सकती है। चुनौतियों से भरे जीवन में हमें भी नई सीख और आने वाली पीढ़ी को सीख देने की जरूरत है। गौ काष्ठ और गोबर के कण्डे को होलिका दहन में अपनाकर हम ग्रीन तथा क्लीन छत्तीसगढ़ के कान्सेप्ट को भी सफल बना सकते हैं। हमारे इस प्रयास से ऑक्सीजन, औषधि देने वाले, मृदा संरक्षण करने वाले, पक्षियों के बैठने की व्यवस्था, कीडे़-मकोड़े, मधुमक्खी के छत्ते से वातावरण को अनुकूलन बनाने वाले वृक्षों के साथ पशु-पक्षियों को भी संरक्षण मिलेगा और हम सभी एक महान कार्य का हिस्सा भी बन सकते हैं। प्रदेश में पांच हजार से अधिक गौठान है। इनमें से अधिकांश गौठानों में गौकाष्ठ व गोबर के कंडे बनाए जा रहे हैं। होलिका में इन गौठानों के गौकाष्ठ और कंडे का उपयोग आसानी से किया जा सकता है।

* सहायक जनसंपर्क अधिकारी
* कमलज्योति

संबंधित समाचार

Leave a Comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.