विश्व आदिवासी दिवस सम्मान का प्रतीक

छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य प्रदेश है। यहां के घने जंगल, पहाड़, नदियों से भरे पड़े हैं। इनकी मनमोहक छटाओं ने देश और विदेशों में अपना अनुपम छाप छोड़ा है। बस्तर में चित्रकोट, तीरथगढ़, तामड़ा घूमर, जैसे अनेक जलप्रपात है। दंतेवाड़ा में मां दंतेश्वरी मंदिर, बारसूर में गणेश मूर्ति और अनेक प्राचीन मंदिर विरासत की एक पहचान है। जंगलों में वर्षो से बसने वाले भोले-भाले आदिवासी सरल और शांतिप्रिय होते है। यहां का इतिहास, लोक कला संस्कृति, नृत्य, वाद्य, श्रृंगार, चित्रकारी और कलाकृति विश्व विख्यात है। बस्तर का क्षेत्र अनेक खनिज संपदाओं और लघुवनोपज का भंडार है।

छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश राज्य में होने के कारण वर्षो से पिछड़े पन का शिकार रहा, जिसमें सड़क, पानी, बिजली, स्वास्थ्य शिक्षा जैसी मुलभूत सुविधाओं के लिए भी मध्यप्रदेश का मूह ताकना पड़ता था। मध्यप्रदेश की राजधानी से छत्तीसगढ़ की अत्यधिक दूरी की वजह से भी विकास कार्यों को यहां तक पहुंचने में सालों लग जाते थे, यही वजह थी की अलग छत्तीसगढ़ राज्य की मांग को लेकर सड़क से सदन तक हंगामा हुआ। नतीजा एक नवम्बर 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य की घोषणा हुई। आदिवासी बाहुल्य राज्य छत्तीसगढ़ में करीब 32 फीसदी अनुसूचित जनजाति रहती है, लेकिन जैसे-जैसे राज्य विकास की राह पर चलने लगा वैसे-वैसे जल, जंगल और जमीन सिमटता गया, धीरे-धीरे आदिवासियों को अपनी ही आवश्यकताओं की कमी होने लगी, साथ में बस्तर के बीहड़ में माओवादियों का खौफ आदिवासियों के लिए मुसीबत खड़ी करने लगा। विकास के रास्ते में माओवादी और नक्सली बाधक बने हुए है। पिछले 18 वर्षों में आदिवासी विकास के लिए लाखों-करोड़ों रुपए खर्च किए गए, मगर आदिवासियों को ना जल मिला, ना जंगल मिली और ना ही जमीन। आदिवासियों का शोषण और उन पर अत्याचार के मामले बढ़ते ही जा रहे थे। ऐसे में मुख्यमंत्री ने शासन पर बैठते ही आदिवासियों के दुख-दर्द को समझा एवं उनके समस्याओं को दूर करने के उद्देष्य से अनेक जनकल्याणकारी योजनाओं एवं हितग्राहीमूलक योजना बनाकर उनको लाभांवित किया। आदिवासियों को अधिकार और मान दिलाने का वादा किया। बस्तर की जमीन टाटा से वापस लेकर ग्रामीणों को वापस की। 2500 रूपये की दर से प्रति क्विंटल धान खरीदी, अल्पकालीन कृषि ऋण माफ, बकाया सिंचाई कर माफ किया, नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी योजना की शुरूवात, गरीबों को प्रति राशन कार्ड 35 किलो चावल, चना, गुड़ देने की योजना बनाई, छोट भूखण्डों की खरीदी-बिक्री से रोक हटाई, चिटफंड कंपनियों से प्रभावितों को राहत, भूमिहीनों को पट्टा, 400 यूनिट तक बिजली बिल आधा, रोजगारों को रोजगार, हर संभाग में कामकाजी महिला आवास गृह, तेंदूपत्ता मजदूरी 4000 रूपये प्रति मानक बोरा, 15 वनोपजों की खरीदी समर्थन मूल्य पर, फूड पार्कों का शिलान्यास, बस्तर में कनिष्ठ कर्मचारी चयन बोर्ड का गठन (स्थानीय युवाओं को भर्ती में प्राथमिकता), भोपालपट्टनम में एशिया का सबसे बड़ा कागज कारखाना खोलने, नक्सल पीड़ित युवाओं को रोजगार देकर आदिवासी समुदाय को बहुत बड़ा उपहार दिया है।

भारत देश सहित पूरे विश्व में आदिवासी समाज शान्ति स्थापना एवं पारस्परिक मैत्रीपूर्ण समन्वय बनाने, एक-दूसरे के अधिकार एवं स्वतंत्रता को सम्मान के साथ बढ़ावा देने, विश्व से गरीबी उन्मूलन, शिक्षा एवं स्वास्थ्य के विकास के उद्देश्य से 24 अक्टूबर 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन किया गया। विश्व के विभिन्न देशों में निवासरत जनजातीय (आदिवासी) समाज अपनी उपेक्षा, गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा का अभाव, बेरोजगारी एवं बंधुआ मजदूर जैसे समस्याओं से ग्रसित हैं। जनजातीय समाज के उक्त समस्याओं के निराकरण हेतु विश्व के ध्यानाकर्षण के लिए वर्ष 1994 में संयुक्त राष्ट्र संघ के महासभा द्वारा प्रतिवर्ष 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाने का फैसला लिया गया। उसके बाद से पूरे विश्व के आदिवासी बाहुल्य देशों में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस बड़े जोर-शोर से मनाया जाता है।

मुख्यमंत्री ने विश्व आदिवासी दिवस पर शासकीय अवकाश देकर यहां के आदिवासी समाज को एक बहुत बड़ा उपहार दिया है। इस उपहार से प्रदेश के समस्त आदिवासी समुदाय को उनके समृद्ध इतिहास, लोक संस्कृति, कला, पर्व-परंपराओं, वेशभूषा, नृत्य, वाद्य इत्यादि को निकट से जानने का मौका दिया और इस अवकाश से उनका मान-सम्मान बढ़ाया है।

हमारा भारत देश जहां वीर सपूतों की धरती है वहीं इस धरती पर अनेक महान वीरांगनाओं ने भी जन्म लेकर अपने समय के इतिहास को एक नया मोड़ दिया। रानी दुर्गावती भी हमारे देश की महान वीरांगनाओं में से एक थी, जिन्होंने अपने गोण्डवाना साम्राज्य की रक्षा के लिए अकबर की विशाल सेना से युद्ध करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। वह कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की सुपुत्री थी।

आदिवासी समाज के क्रान्तिकारी नायक और समाज सुधारक- बिरसा मुंडा भारतीय क्रांतिकारी थे। वे एक धर्म गुरू और जनसाधारण के वीर नायक थे। बिरसा मुंडा में अपने क्रांतिकारी विचारों से आदिवासी समाज की दिशा बदलकर नवीन युग का सूत्रपात किया। अंग्रेजों द्वारा थोपे गये काले कानूनों को चुनौती देकर बर्बर ब्रिटिश साम्राज्य को उन्होंने चुनौती दी थी।

डाॅ. भवर सिंह पोर्ते ने अपने जीवन में आदिवासी शोषण के विरूद्ध आन्दोलन में भाग लेते रहे। आदिवासियों के विकास व उत्थान के लिए उनके द्वारा किये गये कार्यो एवं स्मृति को चिर-स्थायी बनाने के लिए छत्तीसगढ़ शासन ने डाॅ. भंवर सिंह पोर्ते सम्मान स्थापित किया है।

शहीद वीर नारायण सिंह 1857 के स्वतंत्रता समर में मातृभूमि के लिए मर मिटने वाले शहीदों में छत्तीसगढ़ के आदिवासी जन-नायक, वीर नारायण सिंह का नाम सर्वाधिक प्रेरणास्पद है। उन्होंने अन्याय के खिलाफ सतत् संघर्ष का आह्वान, निर्भीकता, चेतना जगाने और ग्रामीण में उनके मौलिक अधिकारों के प्रति जागृति उत्पन्न करने के प्रेरक कार्यो को दृष्टिगत रखते हुए शासन ने उनकी स्मृति में आदिवासी एवं पिछड़ा वर्ग उत्थान के क्षेत्र में शहीद वीर नारायण सिंह सम्मान स्थापित किया है।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय अंचल के अनेक गुमनाम क्रांतिवीरों में बस्तर के गुण्डाधूर एक चमत्कारिक चरित्र है। इस समय अंग्रेजों के कुटिल शासन के प्रति जनरोध बस्तर के भूमकाल के रूप में प्रकट हुआ था। 01 फरवरी 1910 को समूचे बस्तर में विद्रोहो का भूचाल आ गया था। उन्होंने अपने सहयोगियों को एकत्रित कर अंग्रेजों के विद्रोहों का विरोध किया। गुण्डाधूर एक महान सेनानी, छापामार युद्ध के जानकार तथा देशभक्त होने के साथ-साथ आदिवासियों के पारंपरिक हितों के लिए जागरूक थे। जनश्रुतियों तथा गीतों में उनकी वीरता का वर्णन मिलता है। छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में साहसिक कार्य तथा खेल के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए गुण्डाधूर सम्मान स्थापित किया है।

ऐसे वीर आदिवासी क्रांतिकारी से छत्तीसगढ़ की माटी धन्य है। इन्ही आदिवासी समुदाय के कारण छत्तीसगढ़ का अस्तित्व बचा हुआ है। यहां के मूल निवासी आदिवासी समुदाय है, जो वर्षो से यहां की लोक कला संस्कृति को बचाए हुए है। इनके सम्मान में विश्व आदिवासी दिवस पर अवकाश मिलना बहुत बड़ी उपलब्धि और उपहार है। इस अवकाश से लोगों को आदिवासी जीवन और उनके इतिहास, लोक संस्कृति और उनके परंपम्पराओं को जानने का मौका मिलेगा। सभी को विश्व आदिवासी दिवस की बहुत-बहुत बधाई।

लेख: तेजबहादुर सिंह भुवाल

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