रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध लोक पर्व छेरछेरा की बधाई देते हुए प्रदेशवासियों की खुशहाली, सुख, समृद्धि की कामना की है। श्री बघेल ने छेरछेरा पर्व की पूर्व संध्या पर जारी अपने शुभकामना संदेश में कहा है कि नई फसल के घर आने की खुशी में महादान और फसल उत्सव के रूप में पौष मास की पूर्णिमा को छेरछेरा पुन्नी तिहार मनाया जाता है। यह त्यौहार हमारी समाजिक समरसता, समृद्ध दानशीलता की गौरवशाली परम्परा का संवाहक है। इस दिन ‘छेरछेरा, कोठी के धान ल हेरहेरा‘ बोलते हुए गांव के बच्चे, युवा और महिला संगठन खलिहानों और घरों में जाकर धान और भेंट स्वरूप प्राप्त पैसे इकट्ठा करते हैं और इकट्ठा किए गए धान और राशि रामकोठी में रखते हैं और वर्ष भर के लिए अपना कार्यक्रम बनाते हैं।
छेरछेरा हमर छत्तीसगढ़ के समाजिक तानाबाना अउ आपसी भाईचारा के प्रतीक हे।
सियान मन के सिखाए समाजिक कामकाज बर दान अउ भविस्य के चिंता के परंपरा ला बनाए रखबो।
अपन अपन जिम्मेदारी निभाभो तभे समाज आघू बढ़ही। pic.twitter.com/JLRx3IUWPU
— Bhupesh Baghel (@bhupeshbaghel) January 28, 2021
मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ का किसान बहुत उदार होता है। किसानों द्वारा उत्पादित फसल केवल उसके लिए नहीं अपितु समाज के अभावग्रस्त और जरूरतमंद लोगों, कामगारों और पशु-पक्षियों के लिए भी काम आती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार आज ही के दिन भगवान शंकर ने माता अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगी थी, आज ही मां शाकम्भरी जयंती है। इसलिए लोग धान के साथ साग-भाजी, फल का दान भी करते हैं। मान्यता है कि रतनपुर के राजा छह माह के प्रवास के बाद रतनपुर लौटे थे। उनकी आवभगत में प्रजा को दान दिया गया था। छेरछेरा के समय धान मिसाई का काम आखरी चरण में होता है। इस दिन छोटे-बड़े सभी लोग घरों, खलिहानों में जाकर धान और धन इकट्ठा करते हैं। इस प्रकार एकत्रित धान और धन को गांव के विकास कार्यक्रमों में लगाने की परम्परा रही है। छेरछेरा का दूसरा पहलू आध्यात्मिक भी है, यह बड़े-छोटे के भेदभाव और अहंकार की भावना को समाप्त करता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्तमान समय में कुपोषण समाज की बहुत बड़ी समस्या है। कुपोषण दूर करने के लिए सरकार के साथ समाज और लोगों की भागीदारी जरूरी है। अपनी प्राचीन गौरवशाली परम्परा को आगे बढ़ाते हुए बच्चों के स्वस्थ, कुपोषण मुक्त, सुखद भविष्य के लिए सहयोग करें।