विशेष लेख : नृत्य के साथ गीत एवं धुनों की होगी जुगलबंदी, जनजाति संस्कृति की एक बार फिर दिखेगी जीवंत प्रस्तुति

कला और संस्कृति हर जनजाति समुदाय की अपनी विशिष्ट पहचान होती है और जनजाति संस्कृति की इसी पहचान को अक्षुण्ण बनाए रखने राजधानी रायपुर में एक बार फिर द्वितीय राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का भव्य आयोजन किया जा रहा है। रायपुर के साइंस कालेज मैदान में 28 से 30 नवंबर 2021 तक होने वाले इस समारोह में आदिवासी नृत्य के साथ गीत एवं पारम्परिक वेशभूषाओं में एक से बढ़कर एक वाद्ययंत्रों की कर्णप्रिय धुनों की जुगलबंदी के बीच छत्तीसगढ़ ही नही देश के अन्य राज्यों की जनजाति संस्कृति का संगम एवं उनकी जीवंत प्रस्तुति भी देखने को मिलेगी। वर्ष 2019 में पहली बार हुए इस आयोजन में कलाकारों को मंच देकर छत्तीसगढ़ सरकार ने जनजाति संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की पहल की, वहीं इस आयोजन ने दर्शकों और कलाकारों से खूब वाहवाही बटोरी थी। इस बार भी आदिवासी नृत्य से जुड़े कलाकार समारोह में शामिल होने अपनी तैयारी में जुट गए हैं। इस ऐतिहासिक आयोजन का हिस्सा बनने कलाकारों का समूह परीक्षा पास करने खूब मेहनत कर रहे हैं।

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा आयोजित वाला राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव दर्शकों में हर्ष, उल्लास के वातावरण के साथ जनजाति कलाकारों को बड़ा मंच प्रदान किया जा रहा है। साल 2019 में आदिवासियों को जब राष्ट्रीय स्तर के आयोजन में पहली बार मंच मिला तो वे स्व-रचित गीत, अनूठे वाद्य यंत्रों की धुन और आकर्षक वेशभूषा, आभूषण में सज धजकर इस तरह नृत्य कला का प्रदर्शन किया था कि उनकी प्रस्तुतियों को देखने वाले दर्शक आज भी उन्हें भूल नहीं पाते। अपनी नृत्य शैली से सबकों प्रकृति के करीब ले जाने वाले कलाकार नृत्य के साथ बाँसुरी, मादर, ढोल, झांझ, मंजीरे में कर्णप्रिय धुनों की रस घोल जाते हैं जो सबको भावविह्वल करते हुए थिरकने को भी विवश कर देती है।

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पहली बार राष्ट्रीय स्तर के इस आयोजन को याद करते हुए आदिवासी कमार नृत्य से जुड़े कलाकार अमर सिंह का कहना है कि जनजाति समुदाय की संस्कृति को जन-जन तक पहुचाने का इससे बढ़िया माध्यम हो नही सकता है। जीवन के उत्साह और उल्लास को नृत्य के माध्यम से पिरोकर कलाकारों द्वारा छत्तीसगढ़ की विशिष्ट पहचान को भी स्थापित करने में इस आयोजन की बड़ी भूमिका है। धमतरी जिला के ग्राम मोहेरा के रहने वाले जय निरई माता आदिवासी कमार नृत्य समूह के मुखिया अमर सिंह ने बताया कि उनकी टीम में 23 सदस्य है और विशेष पिछड़ी कमार जनजाति द्वारा विवाह के दौरान प्रस्तुत किए जाने वाले गीत व नृत्य की प्रस्तुति लगभग 20 मिनट तक मंच में देते हैं। उन्होंने बताया कि ब्लॉक, जिला, संभाग स्तर पर उनकी प्रस्तुति जारी है। अंतिम चयन होने के पश्चात वे राष्ट्रीय स्तर पर अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे। जय गढ़िया बाबा आदिवासी नृत्य समूह के रतनलाल निषाद ने बताया कि उनके समूह में 30 सदस्य है और घोटुल से जुड़े पारम्परिक मांदरी नृत्य की प्रस्तुति देने के लिए उनके समूह के सभी सदस्यों ने खूब मेहनत की है। उनकी कोशिश है कि राष्ट्रीय स्तर के आयोजन में उन्हें भी शामिल होने का अवसर मिले। कलाकार रतनलाल का कहना है कि ऐसे आयोजन हर साल होने से पारम्परिक नृत्य से जुड़े कलाकार भी सक्रिय रहेंगे और छिपी हुई आदिवासी प्रतिभाओं के साथ संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा। बलौदाबाजार जिले से सुआ नृत्य की प्रस्तुति देने के लिए अपनी तैयारी में जुटी थैरोदाई सुआ नृत्य समूह के बालाराम मरकाम ने बताया कि सुआ नृत्य ग्रामीण अंचलों में किया जाता है। पारम्परिक वेशभूषा में सज-धज कर सुआ नृत्य करने वाली युवतियां सुआ गीत भी प्रस्तुत करती है। इस दौरान वे मांदर बजाकर नृत्य को गतिशील बनाते हैं। श्री मरकाम ने बताया कि छत्तीसगढ़ के अलग-अलग जिलों में जाकर वे अपने कार्यक्रम की प्रस्तुति देते रहे हैं। उनकी भी कोशिश है कि बड़े आयोजन में उनके समूह का चयन हो इसलिए अपनी ओर से पूरी मेहनत कर रहे हैं।

सभी राज्यों को दिया गया है निमंत्रण
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा द्वितीय राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में शामिल होने के लिए देश के सभी राज्यों को निमंत्रण दिया गया है। राज्य सरकार द्वारा अधिकृत संसदीय सचिवों, विधायकों,जनप्रतिनिधियों एवं अधिकारियों द्वारा सम्बंधित राज्य में जाकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा प्रेषित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव से संबंधित मोमेंटो, निमंत्रण पत्र वहां के राज्यपाल, मुख्यमंत्री, संस्कृति मंत्री, मुख्य सचिव और संस्कृति विभाग के सचिव सहित अधिकारियों को हाथ में देकर उन्हें 28 से 30 अक्टूबर तक आयोजित होने वाले समारोह में शामिल होने निमंत्रित किया जा रहा है। अधिकांश राज्यों द्वारा अपने प्रदेश से आदिवासी नृत्य से जुड़े कलाकारों को शामिल होने की सहमति भी दी गई है।

6 देश के विदेशी कलाकारों सहित 25 राज्य हुए थे शामिल
साल 2019 में साइंस कॉलेज मैदान में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय आदिवासी महोत्सव में 6 देश के कलाकारों, 25 राज्यों सहित 1800 से अधिक कलाकारों ने भाग लिया था। युगांडा, बेलारूस, मालदीव, श्रीलंका, थाईलैंड, बांग्लादेश सहित भारत के विभिन्न राज्यों से आए जनजाति कलाकारों ने इस आयोजन में भाग लेकर जनजाति शैली में मंच पर कार्यक्रम प्रस्तुत किया था। अपनी विशिष्ट शैली और परंपराओं की वजह से देखने वालों का ध्यान खींचकर उसे थिरकने को मजबूर कर देना ही आदिवासी नृत्य की पहचान होती है।

विदेशी कलाकारों ने छत्तीसगढ़ सरकार के आयोजन को खूब सराहा था
पहली बार आयोजित किए गए राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य समारोह को देश ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी खूब प्रशंसा मिली थी। समारोह में शामिल थाईलैंड के युवा कलाकार एक्कालक नूनगोन थाई ने इस आयोजन के लिए छत्तीसगढ़ सरकार की सराहना करते हुए कहा था कि जनजाति समुदाय की अपनी कला, संस्कृति होती है। इसकी पहचान आवश्यक है। जनजाति समुदाय एक कस्बे या इलाकों में निवास करते हैं, ऐसे में उनकी कला, संस्कृति की पहचान एक सीमित क्षेत्र में सिमट कर रह जाती है। राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी महोत्सव का आयोजन ऐसे सीमित क्षेत्र में सिमटे हुए कलाकारों की प्रतिभाओं को सामने लाने के साथ बड़े स्तर पर उनकी पहचान को स्थापित करते हुए जनजाति समाज की कला और संस्कृति की संरक्षण में एक बड़ा कदम है। उन्होंने बताया था कि छत्तीसगढ़ राज्य के कलाकारों की प्रस्तुति भी उन्हें बहुत पसंद आई। बस्तर, झारखंड, लद्दाख, जशपुर सहित अन्य कलाकारों की प्रस्तुति को शानदार बताते हुए जनजाति समुदाय से जुड़े नृत्यों का आयोजन समय-समय पर होते रहने की बात कही। एक्कालक ने महोत्सव में नृत्य देखने आने वाले दर्शकों के साथ ही कलाकारों के आतिथ्य व सत्कार पर शासन को धन्यवाद दिया।

बेलारूस की एलिसा स्टूकोनोवा ने कहा था कि यह उसका सौभाग्य है कि वह छत्तीसगढ़ आई। इसके लिए उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार को विशेष रूप से धन्यवाद बोलते हुए कहा था कि राष्ट्रीय आदिवासी महोत्सव का आयोजन कर जनजाति समुदाय के कलाकारों को मंच देने का काम किया गया। एलिसा ने कहा था कि छत्तीसगढ़ के कलाकारों की प्रस्तुति देखकर अहसास हुआ कि यहां की संस्कृति, जीवन में कितनी विविधताए हैं। बड़े मंच पर कार्यक्रम प्रस्तुत करने के बाद हर कलाकारों का विश्वास दुगना होगा और आने वाले समय में इस तरह के आयोजन से आदिवासी संस्कृति की पहचान बढ़ेगी।

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